भूमिका
भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने अपने 70 वर्षों की यात्रा पूरी कर ली है। यह केवल एक संगठन की यात्रा नहीं है, बल्कि भारतीय श्रमिक आंदोलन के एक स्वदेशी और वैचारिक रूप से समर्पित प्रयास की भी कहानी है। बीएमएस की स्थापना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विचारों से प्रेरित होकर हुई थी और इन सात दशकों में इसने मजदूरों के हितों की रक्षा करते हुए एक वैकल्पिक विचारधारा प्रस्तुत की है।
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बीएमएस की स्थापना
23 जुलाई 1955 को डॉक्टर दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने बीएमएस की स्थापना की थी। यह समय वह था जब श्रमिक आंदोलन पर वामपंथी विचारधारा का गहरा प्रभाव था। बीएमएस ने “राष्ट्र सर्वोपरि” के सिद्धांत को आधार बनाकर कार्य करना शुरू किया। उसका उद्देश्य केवल मजदूरों के आर्थिक हितों की रक्षा करना नहीं था, बल्कि राष्ट्र निर्माण में श्रमिकों की भागीदारी को भी सुनिश्चित करना था।
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बीएमएस का वैचारिक आधार
बीएमएस की सोच “भारतीयता” पर आधारित रही है। यह वर्ग संघर्ष की बजाय वर्ग समन्वय में विश्वास करता है। यह विचार आरएसएस के दर्शन से ही उपजा है, जो समाज के सभी वर्गों को एक इकाई मानता है। बीएमएस का उद्देश्य यह नहीं था कि मजदूरों को मालिकों से लड़ाया जाए, बल्कि यह था कि दोनों मिलकर राष्ट्र निर्माण में सहयोग करें।
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आरएसएस की भूमिका
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बीएमएस को एक वैचारिक आधार प्रदान किया। संघ ने यह सुनिश्चित किया कि श्रमिक आंदोलन भारतीय संस्कृति और मूल्यों के अनुरूप चले। आरएसएस के स्वयंसेवकों ने बीएमएस के माध्यम से देशभर में संगठित रूप से काम किया, खासकर असंगठित क्षेत्र में। संघ की प्रेरणा से बीएमएस ने ट्रेड यूनियन आंदोलन को एक नई दिशा दी — नकारात्मक विरोध की जगह सकारात्मक सुझाव और समाधान को प्राथमिकता दी।
70 वर्षों की उपलब्धियाँ
बीएमएस आज भारत की सबसे बड़ी ट्रेड यूनियन बन चुकी है। इसने कई महत्वपूर्ण श्रमिक कानूनों में संशोधन के लिए सरकार पर प्रभाव डाला है। चाहे न्यूनतम वेतन बढ़ाने की बात हो, या श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा देने की—बीएमएस ने हर जगह मजदूरों के हित में आवाज उठाई है। इसके साथ ही इसने कभी राजनीतिक हड़तालों का सहारा नहीं लिया, जिससे इसका उद्देश्य स्पष्ट रहता है—मजदूर, राष्ट्र और विकास।
निष्कर्ष
70 वर्षों की यह यात्रा केवल संगठनात्मक उपलब्धियों की कहानी नहीं है, बल्कि यह एक वैचारिक संघर्ष की विजय भी है। बीएमएस और आरएसएस का यह समन्वय भारतीय श्रमिकों को आत्मगौरव, आत्मनिर्भरता और राष्ट्रभक्ति की भावना से जोड़ता है। आज जब भारत “विकसित राष्ट्र” बनने की ओर अग्रसर है, तो बीएमएस की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
"श्रमिक नहीं, राष्ट्र निर्माता!" — यही है बीएमएस का मंत्र।